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इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

भारत के बहुत सारे किसानों पर कृषि हेतु भूमि बहुत कम है। उस थोड़ी सी भूमि पर भी वह पहले से चली आ रही खेती को ही करते हैं, जिसे हम पारंपरिक खेती के नाम से जानते हैं। लेकिन इस प्रकार से खेती करके जीवन यापन भी करना एक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। परन्तु आज के समय में किसान स्मार्ट तरीकों की सहायता से 1 एकड़ जमीन से 1 लाख रूपये तक की आय अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में प्रत्येक व्यवसाय में लाभ देखने को मिलता है। कृषि विश्व का सबसे प्राचीन व्यवसाय है, जो कि वर्तमान में भी अपनी अच्छी पहचान और दबदबा रखता है। हालाँकि, कृषि थोड़े समय तक केवल किसानों की खाद्यान आपूर्ति का इकलौता साधन था। लेकिन वर्त्तमान समय में किसानों ने सूझ-बूझ व समझदारी से सफलता प्राप्त कर ली है। आजकल फसल उत्पादन के तरीकों, विधियों एवं तकनीकों में काफी परिवर्तन हुआ है। किसान आज के समय में एक दूसरे के साथ सामंजस्य बनाकर खेती किसानी को नई उचाईयों पर ले जाने का कार्य कर रहे हैं। आश्चर्यचकित होने वाली यह बात है, कि किसी समय पर एक एकड़ भूमि से किसानों द्वारा मात्र आजीविका हेतु आय हो पाती थी, आज वही किसान एक एकड़ भूमि से बेहतर तकनीक एवं अच्छी फसल चयन की वजह से लाखों का मुनाफा कमा सकता है। यदि आप भी कृषि से अच्छा खासा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको भूमि पर एक साथ कई सारी फसलों की खेती करनी होगी। सरकार द्वारा भी किसानों की हर संभव सहायता की जा रही है। किसानों को आर्थिक मदद से लेकर प्रशिक्षण देने तक सरकार उनकी सहायता कर रही है।

वृक्ष उत्पादन

किसान पेड़ की खेती करके अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं। लेकिन उसके लिए किसानों को अपनी एकड़ भूमि की बाडबंदी करनी अत्यंत आवश्यक है। जिससे कि फसल को जंगली जानवरों की वजह से होने वाली हानि का सामना ना करना पड़े। पेड़ की खेती करते समय किसान अच्छी आमदनी देने वाले वृक्ष जैसे महानीम, चन्दन, महोगनी, खजूर, पोपलर, शीशम, सांगवान आदि के पेड़ों का उत्पादन कर सकते हैं। बतादें, कि इन समस्त पेड़ों को बड़ा होने में काफी वर्ष लग जाते हैं। किसान भूमि की मृदा एवं तापमान अनुरूप फलदार वृक्ष का भी उत्पादन कर सकते हैं। फलदार वृक्षों से फल उत्पादन कर अच्छी कमाई की जा सकती है।

पशुपालन

पेड़ लगाने के व खेत की बाडबंदी के उपरांत सर्वप्रथम गाय या भैंस की बेहतर व्यवस्था करें। क्योंकि गाय व भैंस के दूध को बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जाता है। साथ ही, इन पशुओं के गोबर से किसान अपनी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद की व्यवस्था भी कर सकते हैं। किसान चाहें तो पेड़ उत्पादन सहित खेत के सहारे-सहारे पशुओं हेतु चारा उत्पादन भी कर सकते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि बहुत से पशु एक दिन के अंदर 70-80 लीटर तक दूध प्रदान करते हैं। किसान बाजार में दूध को विक्रय कर प्रतिमाह हजारों की आय कर सकते हैं।


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मौसमी सब्जियां

किसान अपनी एक एकड़ भूमि का कुछ भाग मौसमी सब्जियों का मिश्रित उत्पादन कर सकते हैं। यदि किसान चाहें तो वर्षभर मांग में रहने वाली सब्जियां जैसे कि अदरक, फूलगोभी, टमाटर से लेकर मिर्च, धनिया, बैंगन, आलू , पत्तागोभी, पालक, मेथी और बथुआ जैसी पत्तेदार सब्जियों का भी उत्पादन कर सकते हैं। इन सब सब्जियों की बाजार में अच्छी मांग होने की वजह से तीव्रता से बिक जाती हैं। साथ इन सब्जिओं की पैदावार भी किसान बार बार कटाई करके प्राप्त हैं। किसान आधा एकड़ भूमि में पॉलीहाउस के जरिये इन सब्जियों से उत्पादन ले सकते हैं।

अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन

देश में प्रत्येक सीजन में अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन किया जाता है, सर्वाधिक दाल उत्पादन खरीफ सीजन में किया जाता हैं। बाजरा, चावल एवं मक्का का उत्पादन किया जाता है, वहीं रबी सीजन के दौरान सरसों, गेहूं इत्यादि फसलों का उत्पादन किया जाता है। इसी प्रकार से फसल चक्र के अनुसार प्रत्येक सीजन में अनाज, दलहन अथवा तिलहन का उत्पादन किया जाता है। किसान इन तीनों फसलों में से किसी भी एक फसल का उत्पादन करके 4 से 5 माह के अंतर्गत अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं।

सोलर पैनल

आजकल देश में सौर ऊर्जा के उपयोग में वृध्दि देखने को मिल रही है। बतादें, कि बहुत सारी राज्य सरकारें तो किसानों को सोलर पैनल लगाने हेतु धन प्रदान कर रही हैं। सोलर पैनल की वजह से किसानों को बिजली एवं सिंचाई में होने वाले खर्च से बचाया जा सकता है। साथ ही, सौर ऊर्जा से उत्पन्न विघुत के उत्पादन का बाजार में विक्रय कर लाभ अर्जित किया जा सकता है। जो कि प्रति माह किसानों की अतिरिक्त आय का साधन बनेगी। विषेशज्ञों द्वारा किये गए बहुत सारे शोधों में ऐसा पाया गया है, सोलर पैनल के नीचे रिक्त स्थान पर सुगमता से कम खर्च में बेहतर सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है।
इस फसल की बढ़ती माँग से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

इस फसल की बढ़ती माँग से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि एक हेक्टेयर में करीब 25 टन शकरकंद का उत्पादन होता होता है। यदि किसान इसकी कीमत 10 रुपए किलो के हिसाब से भी मानें तो एक एकड़ से उत्पादक न्यूनतम 1.25 लाख रुपए अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में विश्वभर में भारत से बहुत सारे उत्पाद व वस्तुएं निर्यात की जाती रही हैं, शकरकंद उनमें से एक है। आलू की भाँति दिखने वाला शकरकंद की भारत सहित विश्वभर में माँग की जाती है। दरअसल, विश्वभर में शकरकंद निर्यातकों की सूचि में भारत छठवें स्थान पर है, परंतु जिस प्रकार से किसान इसके उत्पादन पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इस हिसाब से बहुत जल्द भारत चीन को पछाड़कर निर्यातकों की सूचि में प्रथम स्थान हासिल प्राप्त करलेगा। बतादें, कि देश के बहुत सारे राज्यों में शकरकंद का उत्पादन बेहतरीन तरीके से किया जा रहा है एवं किसान इसकी फसल से अच्छा खासा लाभ भी उठा पा रहे हैं। आगे हम इस लेख में शकरकंद के उत्पादन से कैसे अधिक मुनाफा कमा पाएंगे इस विषय में हम चर्चा करेंगे। शकरकंद का उत्पादन करने हेतु सर्वप्रथम उत्पादक द्वारा स्वयं की भूमि का मृदा परीक्षण करना होगा। यदि किसान के भूमि की मृदा अत्यंत कठोर एवं पथरीली है अथवा किसान के खेत में जलभराव जैसी दिक्कत भी है, ऐसे में कृषकों हेतु शकरकंद का उत्पादन करना अच्छा नहीं होगा। साथ ही, यदि आपके खेत की मृदा का पीएच मान 5.8 से 6.8 के मध्य है, तो आप शकरकंद का उत्पादन करना बेहद आसानी से कर सकते हैं। शकरकंद का उत्पादन करने के दौरान सिंचाई का अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना अत्यंत आवश्यक है। यदि किसानों ने ग्रीष्म ऋतु में शकरकंद के पौधे लगाए हैं, उस समय रोपाई के तुरंत उपरांत सिंचाई नहीं करनी चाहिए। किसान भाई ध्यान रखें कि सिंचाई सप्ताह में केवल एक बार ही हो। यदि बरसात का मौसम है, तो किसान बिल्कुल भी शकरकंद में बिल्कुल पानी न लगाएं।

किसान खाद किस तरह से लगाएं

वर्तमान दौर में यदि आप किसी भी फसल का उत्पादन कर रहे हैं, याद रहे कि आपकी फसल का उत्पादन खेतों में दिए गए खाद की गुणवत्ता एवं मात्रा एक अहम भूमिका निभाती है। यदि कृषक शकरकंद का उत्पादन कर रहे हैं, तो किसानों को निज खेतों में नाइट्रोजन, फॉस्फोसर एवं पोटाश का समुचित मात्रा में उपयोग करना चाहिए। साथ ही, यदि आपकी जमीन अत्यधिक अम्लीय है, ऐसी स्थिति में कृषकों को मैग्निशियन सल्फेट, जिंकोसल्फेट एवं बोरोन का उपयोग करना होगा। ऐसे उर्वरकों को किसान कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञों के दिशा निर्देशानुसार ही समुचित मात्रा में दें।


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कितनी होगी पैदावार

आज के समय में फसल उत्पादकों हेतु बेहतरीन फसल का चुनाव सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण बात है। किसानों को जिस फसल से अत्यधिक लाभ हो सके एवं उनके द्वारा किये गए व्यय को निकालकर वह अच्छी आमंदनी भी अर्जित कर सकें। हालाँकि, शकरकंद की बात की जाए तो यह फसल काफी अच्छी आमंदनी करने में सहायक साबित होती है। उत्पादन की बात करें तो एक हेक्टेयर में तकरीबन 25 टन शकरकंद की पैदावार होती है। किसान कम से कम 10 रुपए किलो भी शकरकंद का मूल्य रखें उस गणित से एक एकड़ में उत्पादन कर किसान न्यूनतम 1.25 लाख रुपए का लाभ अर्जित कर सकते हैं।
मार्च-अप्रैल में उगाई जाने वाली फसलों की उत्तम किस्में व उनका उपचार क्या है?

मार्च-अप्रैल में उगाई जाने वाली फसलों की उत्तम किस्में व उनका उपचार क्या है?

आने वाले दिनों में किसान भाइयों के खेतों में रबी की फसल की कटाई का कार्य शुरू हो जाएगा। कटाई के बाद किसान भाई अगली फसलों की बुवाई कर सकते हैं। 

किसान भाइयों आज हम आपको हम हर माह, महीने के हिसाब से फसलों की बुवाई की जानकारी देंगे। ताकि आप उचित वक्त पर फसल की बुवाई कर शानदार उपज प्राप्त कर सकें। 

इसी कड़ी में आज हम मार्च-अप्रैल माह में बोई जाने वाली फसलों के विषय में जानकारी दे रहे हैं। इसी के साथ उनकी ज्यादा उपज देने वाली प्रजातियों से भी आपको रूबरू कराऐंगे।

1. मूंग की बुवाई 

पूसा बैशाखी मूंग की व मास 338 और टी 9 उर्द की किस्में गेहूं कटने के पश्चात अप्रैल माह में लगा सकते हैं। मूंग 67 दिनों में व मास 90 दिनों में धान रोपाई से पहले पक जाते हैं तथा 3-4 क्विंटल उत्पादन देते हैं। 

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मूंग के 8 कि.ग्रा. बीज को 16 ग्राम वाविस्टीन से उपचारित करने के उपरांत राइजावियम जैव खाद से उपचार करके छाया में सुखा लें। एक फुट दूर बनी नालियों में 1/4 बोरा यूरिया व 1.5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालकर ढक दें। 

उसके बाद बीज को 2 इंच दूरी तथा 2 इंच गहराई पर बोएं। अगर बसंतकालीन गन्ना 3 फुट के फासले पर बोया है तो 2 कतारों के मध्य सह-फसल के रूप में इन फसलों की बिजाई की जा सकती है। इस स्थिति में 1/2 बोरा डी.ए.पी. सह-फसलों के लिए अतिरिक्त डालें।

2. मूंगफली की बुवाई 

मूंगफली की एस जी 84 व एम 722 किस्में सिंचित स्थिति में अप्रैल के अंतिम सप्ताह में गेहूं की कटाई के शीघ्रोपरांत बोई जा सकती हैं। जोकि अगस्त के अंत तक या सितंबर शुरू तक पककर तैयार हो जाती है। 

मूंगफली को बेहतर जल निकास वाली हल्की दोमट मृदा में उगाना चाहिए। 38 किलोग्राम स्वस्थ दाना बीज को 200 ग्राम थीरम से उपचारित करने के बाद राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करें। 

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कतारों में एक फुट और पौधों में 9 इंच के फासले पर बीज 2 इंच से गहरा प्लांटर की सहायता से बुवाई कर सकते हैं। बिजाई पर 1/4 बोरा यूरिया, 1 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट, 1/3 बोरा म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 70 किलोग्राम जिप्सम डालें।

3. साठी मक्का की बुवाई 

साठी मक्का की पंजाब साठी-1 किस्म को पूरे अप्रैल में लगा सकते है। यह किस्म गर्मी सहन कर सकती है तथा 70 दिनों मेंपककर 9 किवंटल पैदावाद देती है। खेत धान की फसल लगाने के लिए समय पर खाली हो जाता है। 

साठी मक्का के 6 कि.ग्रा. बीज को 18 ग्राम वैवस्टीन दवाई से उपचारित कर 1 फुट लाइन में व आधा फुट दूरी पौधों में रखकर प्लांटर से भी बीज सकते है। 

बीजाई पर आधा बोरा यूरिया, 1.7 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट व 1/3 बोरा म्यूरेट आफ पोटास डाले। यदि पिछले वर्ष जिंक नहीं डाला तो 10 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट भी जरूर डालें।

4. बेबी कार्न यानी मक्का की बुवाई 

बेबीकार्न की संकर प्रकाश व कम्पोजिट केसरी किस्मों के 16 किलोग्राम बीज को एक फुट लाइनों में तथा 8 इंच पौधों में दूरी रखकर बोएं। खाद मात्रा साठी मक्का के समान ही है। यह फसल 60 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 

बतादें, कि इस मक्का के पूर्णतय कच्चे भुट्टे बिक जाते हैं, जो कि होटलों में सलाद, सब्जी, अचार, पकौड़े व सूप तैयार करने के काम में आते हैं। इसके अतिरिक्त हमारे देश से इसका निर्यात भी किया जाता है।

5. अरहर के साथ मूंग या उड़द की मिश्रित बुवाई

किसान भाई सिंचित अवस्था में टी-21 तथा यू.पी. ए. एस. 120 किस्में अप्रैल में लग सकती है। 7 कि.ग्रा. बीज को राइजोवियम जैव खाद के साथ उपचारित करके 1.7 फुट दूर कतारों में बोया जाना चाहिए। 

बिजाई पर 1/3 बोरा यूरिया व 2 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालनी चाहिए। अरहर की 2 कतारों के मध्य एक मिश्रित फसल ( मूंग या उड़द) की लाइन भी लगाई जा सकती है, जो 60 से 90 दिन में तैयार हो जाती है।

6. गन्ने की बुवाई 

बोआई का समय : उत्तर भारत में मुख्यतह: फरवरी-मार्च में गन्ने की बसंत कालीन बुवाई की जाती है। गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर – नवम्बर है। बसंत कालीन गन्ना 15 फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए। उत्तर भारत में बुवाई का विलम्बित समय अप्रैल से 16 मई तक है।

7. लोबिया की बुवाई

लोबीया की एफ एस 68 किस्म 67-70 दिनों के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। गेहूं कटने के पश्चात एवं धान, मक्का लगने के बीच फिट हो जाती है तथा 3 क्विंटल तक उपज देती है। 

12 किलोग्राम बीज को 1 फुट दूर कतारों में लगाएं और पौधों में 3-4 इंच का फासला रखें। बीजाई पर 1/3 बोरा यूरिया व 2 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें। 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें।

8. चौलाई की बुवाई

चौलई की फसल अप्रैल माह में लग सकती है, जिसके लिए पूसा किर्ति व पूसा किरण 500-600 किग्रा. पैदावार देती है। 700 ग्राम बीज को कतारों में 6 इंच और पौधों में एक इंच की दूरी पर आधी इंच से गहरा न लगाऐं। बुवाई पर 10 टन कम्पोस्ट, आधा बोरा यूरिया और 2.7 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट डालें।

9. कपास : दीमक से बचाव के लिए करें बीजों का उपचार

गेहूं के खेत खाली होते ही कपास की तैयारी प्रारंभ कर कर सकते हैं। कपास की किस्मों में ए ए एच 1, एच डी 107, एच 777, एच एस 45, एच एस 6 हरियाणा में तथा संकर एल एम एच 144, एफ 1861, एफ 1378 एफ 846, एल एच 1776, देशी एल डी 694 व 327 पंजाब में लगा सकते है। 

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बीज मात्रा (रोएं रहित) संकर किस्में 1.7 कि.ग्रा. तथा देशी किस्में 3 से 7 कि.ग्रा. को 7 ग्राम ऐमीसान, 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन, 1 ग्राम सक्सीनिक तेजाब को 10 लीटर पानी के घोल में 2 घंटे रखें। 

उसके बाद दीमक से संरक्षण के लिए 10 मि.ली. पानी में 10 मि.ली. क्लोरीपाईरीफास मिलाकर बीज पर छिडक दें तथा 30-40 मिनट छाया में सुखाकर बीज दें। यदि इलाके में जड़ गलन की दिक्कत है, तो उसके बाद में 2 ग्राम वाविस्टीन प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से सूखा बीज उपचार भी कर लें। 

कपास को खाद - बीज ड्रिल या प्लांटर की मदद से 2 फुट कतारों में व 1 फुट पौधों में दूरी रखकर 2 इंच तक गहरा बोएं।

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली फसलें और कृषि कार्यों की जानकारी

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली फसलें और कृषि कार्यों की जानकारी

अप्रैल के महीने तक तकरीबन समस्त रबी फसलें कट जाती हैं। किसान भी अपनी फसलों का प्रबंधन करके मंडी पहुंचाने लगते हैं। अब जायद सीजन की फसलों की बुवाई की जानी हैं। 

ये फसलें फायदे के साथ-साथ मृदा की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ा देती हैं। अप्रैल माह में उगाई जाने वाली ये फसलें आपको अच्छा खासा मुनाफा प्रदान कर सकती हैं। किसानों को कम समयांतराल में ही मिलेगी बंपर उपज।

रबी फसलों की कटाई और खरीफ सीजन से पूर्व कुछ ही माह बीच में खाली बच जाते हैं, जिसको जायद सीजन भी कहा जाता है। इस दौरान विभिन्न दलहनी और तिलहनी फसलें बोई जाती हैं, जो धान मक्का की खेती से पहले ही पककर तैयार हो जाती हैं। 

जायद सीजन में विशेष सब्जी फसलों की भी बुवाई की जाती हैं। इसके अतिरिक्त बहुत सारे लोग मृदा की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए जायद सीजन में ढेंचा, लोबिया और मूंग की खेती भी करते हैं। इससे मृदा में नाइट्रोजन का स्तर काफी बढ़ जाता है।

खेत की तैयारी

रबी फसलों की कटाई के बाद सर्व प्रथम खेत में गहरी जुताई लगाएं और खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें। जायद सीजन की फसलों की बुवाई करने से पहले मृदा की अवश्य जांच करवा लें। 

इससे सही मात्रा में खाद-उर्वरक का इस्तेमाल करने की राहत मिल जाएगी और अनावश्यक खर्चों से राहत मिलेगी। हर फसल सीजन के पश्चात मृदा की जांच करवाने से इसकी कमियों का भी जाँच पहचान हो जाती है, जिन्हें वक्त रहते ठीक किया जा सकता है।

साठी मक्का और बेबी कॉर्न के लिए उपयुक्त समय

यह समय साठी मक्का और बेबी कॉर्न की खेती के लिए अनुकूल है। दोनों ही फसलें 60 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। फिर कटाई के पश्चात सहजता से धान की बिजाई का काम भी किया जा सकता है।

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इन दिनों बेबी कॉर्न भी काफी चलन में है। ये मक्का कच्चा ही बिक जाता है। होटलों में बेबी कॉर्न की सलाद, सब्जी, अचार, पकौड़े व सूप आदि काफी प्रसिद्ध हैं।

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली सब्जी की फसलें

अप्रैल माह में किसान सब्जी फसलों की खेती भी कर सकते हैं। यह समय तोरई, बैंगन, लौकी, भिंडी और करेला की खेती के लिए बेहद अनुकूल है। 

मौसम की मार से जायद सीजन की फसलों को सुरक्षित रखने के लिए किसान पॉलीहाउस, ग्रीन हाउस अथवा लो टनल की व्यवस्था कर लें। इन संरक्षित ढांचों की स्थापना के लिए राज्य सरकारें किसान भाइयों को अनुदान भी मुहैया करवाती हैं।

दलहन में कौन-सी फसल के लिए सही समय और सलाह

अप्रैल का महीना उड़द की खेती के लिए बेहद अनुकूल माना जाता है। हालांकि, जलभराव वाले क्षेत्रों में इसकी बुवाई करने से बचना चाहिए। उड़द की खेती के लिए प्रति एकड़ 6-8 किलो बीजदर का उपयोग करें। इसकी खेत में बुवाई से पहले-पहले बीज को थीरम या ट्राइकोडर्मा से उपचारित अवश्य कर लें।

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किसान भाई दलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अरहर की फसल ले सकते हैं। किसान उचित जल निकासी वाली मृदा में कतारों में अरहर की बुवाई करते हैं। ये फसल 60 से 90 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। आप चाहें तो अरहर की लघु समयावधि वाली किस्मों की बुवाई भी कर सकते हैं।

सोयाबीन की फसल के लिए सही समय

सोयाबीन की फसल घरेलू उपयोग में आने वाली एक मुख्य फसल है। अप्रैल माह में बोई गई सोयाबीन की फसल में बीमारियां लगने की संभावना काफी कम रहती है। ये फसल वातावरण में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करती है। 

पानी रुकने वाले क्षेत्रों में सोयाबीन की बुवाई करने से बचना चाहिए। किसान भाइयों को शानदार और बेहतरीन उपज पाने के लिए बुवाई से पहले खेत की 3 गहरी जुताईयां करने की सलाह दी जाती है।

गेंहू कटते ही करदें मूंगफली की बुवाई

अप्रैल के आखिरी सप्ताह तक मतलब कि गेहूं की कटाई के शीघ्रोपरान्त मूंगफली की फसल की बुवाई की जा सकती है। ये फसल अगस्त-सितंबर तक पककर तैयार हो जाएगी। 

परंतु, जलनिकासी वाले क्षेत्रों में ही मूंगफली की बुवाई करनी चाहिए। दरअसल, शानदार उत्पादन के लिए हल्की दोमट मिट्टी में बीजोपचार के पश्चात ही मूंगफली के दानों की बिजाई करें।

किसान ढेंचा की खेती भी कर सकते है

खरीफ सीजन की धान-मक्का की बिजाई से पूर्व किसान भाई ढेंचा यानी हरी खाद की फसल ले सकते हैं। इससे खाद-उर्वरकों पर खर्च होने वाली धनराशि सुगमता से बच जाएगी। 

ढेंचा की फसल 45 दिन के अंतर्गत लगभग 5 से 6 सिंचाईयों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद धान की खेती करने पर उत्पादन की क्वालिटी और उपज शानदार मिलती है।